संवाददाता:- अमित कुमार श्रीवास्तव / गोंडा जनपद विकासखंड नवाबगंज के सुहागिन स्त्रियों ने अपने पति की लंबी उम्र एवं अखंड सौभाग्य के लिए वटवृक्ष की विधि विधान से पूजा की हिंदी पंचांग के अनुसार, वट
हिंदी पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है। इस दिन विवाहित औरतें वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य अपने पति की लंबी उम्र की कामना करना और अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाना होता है। वट सावित्री व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है। इस साल वट सावित्री व्रत आज 10 जून दिन गुरुवार को पूरी विधि-विधान से रखा जाएगा। इस दिन पूजा के दौरान वट सावित्री व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
पौराणिक मान्यता के अनुसार वट सावित्री की पूजा करने से पति की लंबी उम्र के साथ-साथ परिवार में सुख शांति और समृद्धि आती है. वट सावित्री पूजा में महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों तरफ चक्कर लगाकर बरगद पेड़ की विधिवत पूजा करती हैं
अमावस्या तिथि कब होगी समाप्त
अमावस्या तिथि आरंभ मुहूर्त: 9 जून 2021, बुधवार की दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्ति मुहूर्त: 10 जून 2021, गुरुवार शाम 4 बजकर 22 मिनट तक
*क्यों खास है इस बार की ज्येष्ठ अमावस्या*
साल का पहला सूर्य ग्रहण 2021 पड़ रहा है. जो दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से शुरू हो जायेगा और शाम 6 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.
शनि जयंति 2021 को है. मान्यता है कि शनि देव का जन्म आज ही हुआ था.
अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं वट सावित्री व्रत रख रही हैं. वट वृक्ष की पूजा की जा रही है.
पितरों की आत्मा की शांति के लिए दिन अच्छा माना जाता है.
सूर्य पूजा और पवित्र नदी में डूबकी लगाकर पाप का नाश करने के लिए लोग कामनाएं करते है.
*वट सावित्री के प्रमुख भोग*
वट सावित्री व्रत के दौरान आम का मुरब्बा, भिगोए चने, पूरी व पुए खास भोग है. ऐसी मान्यता है कि इसे चढ़ाने से त्रिदेव से अखंड सौभाग्य का वर मिलता है.
*पूजा प्रसाद में चना रखना न भूलें*
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था. इस लिए इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है.
*जानें वट सावित्री व्रत के लिए पूजन की सामग्री*
बांस की लकड़ी का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि.
बेहद खास माना जा रहा है ये योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्र को सौभाग्य व वैवाहिक जीवन का कारक माना जाता है. इस दिन वृषभ राशि में चतुर्ग्रही योग बनना बेहद खास माना जा रहा है. चार ग्रहों के एक राशि में होने पर चतुर्ग्रही योग बनता है. मान्यता है कि इस योग से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है.
*वट सावित्री व्रत कथा*
प्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनको संतान सुख नहीं प्राप्त था। इसके लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे। राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में स्वीकार कर लिया।इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान् की अल्पआयु के बारे में बताया। माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा।
सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई थीं, उन्होंने वस्त्राभूषणों का त्यागकर अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा करती रहती थी।सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। समय नजदीक आने से सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।
प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं। तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं।उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आंखें दीं, उनका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को लौटने के लिए कहा। वह लौटती कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा। यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। अतः पतिव्रता सावित्री की तरह ही अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।

मुंबई: कोरोना की लड़ाई में पीएम मोदी की दीपक जलाने वाले मुहिम का देशवासियों ने पूरा समर्थन किया। जिस प्रकार से शुक्रवार को पीएम मोदी ने एक वीडियो मैसेज जारी कर रविवार की रात्रि 09 बजे 09 मिनट तक घर की लाइट बन्द कर दीपक, टार्च व मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाने की अपील की थी, रविवार की रात्रि 09 बजे उसका पूरा समर्थन मिलता हुआ दिखाई दिया। देश के लगभग सभी हिस्सों से आई तश्वीरो से स्पष्ट हो गया कि देश कोरोना की लड़ाई में एकजुट है।
पीएम मोदी के मुहिम का हिस्सा बनते हुये धार्मिक गुरु राधे मां ने भी एकता व अखंडता के दीपक जलायें। उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहाकि हम सभी को मिलकर इस महामारी के खिलाफ लड़ना है, हमारी एकजुटता व इस प्रकोप के प्रति जागरूकता ही कोरोना रूपी माहमारी पर विजय का मार्ग प्रशस्त करेगी। राधे मां ने जनता से अपील करते हुए कहाकि वर्ल्ड हेल्थ संगठन द्वारा बताये जा रहें नियमों का पालन कीजिये तथा लॉक डाउन को सफल बनाते हुए सामजिक दुरी बनाइये तभी हम कोरोना को देश से भगाने में सफल हो पायेंगे।
Report Nishant Pandit/ राजस्थान : उदयपुर /कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष महिलाएं घर में ही मना रही है गणगौर पर्व
गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिंदूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है।
गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक,१८ दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर।यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव )उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं ,चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है।
गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य,अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।
गणगौर व्रत कथा
एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए। वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे। उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी।
थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची। इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है ।
इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा। किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया।
पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो । तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई । स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया।
भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए ।
इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी।
शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया।
धौलपुर। महिलाओं ने पति की लंबी उम्र के लिए शुक्रवार का दिनभर व्रत रखा और दोपहर में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की एवं गणगौर माता के प्रभाव की कथा सुनी। बताया गया कि कुवारी कन्याओं ने इच्छित वर की प्राप्ति के लिए भी गणगौर व्रत रखा। महिलाओं ने घरों में पकवान बनाए थे। दोपहर में महिलाओं ने समूह में एकत्रित होकर एक स्थान पर माता गौरी और भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर हवन और आरती की। इस अवसर पर गणगौर माता के व्रत की कथा सुनाई गई। आरती करने के बाद पकवानों को लोगों में बांट दिया गया। शाम को महिलाओं ने फलाहार कर व्रत तोड़ा।
नवरात्र में मां के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन की कठिन समय मे भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है।
देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है। जो साधक मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं।
क्या चढ़ाएं प्रसाद :- मां भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए मां को शक्कर का भोग प्रिय है। ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।
इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है।ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है।
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। ये मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं। तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इनके अन्य नाम हैं। इनकी पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं, रुकावटें दूर हो जाती हैं और विजय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा हर तरह की परेशानियां भी खत्म होती हैं।
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और
प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
ध्यान मंत्रवन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें।
देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं।
इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।
1. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
इसके बाद देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं। प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करें और प्रदक्षिणा करें यानी 3 बार अपनी ही जगह खड़े होकर
घूमें। प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। इन सबके बाद क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद बांट दें।प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।